पौराणिक असि नदी की रक्षा को वाराणसी के नागरिकों, समाजसेवी संस्थाओं ने छेड़ी मुहिम
असि नदी को नाला बता चुका है बनारस का राजस्व विभाग
-एनजीटी ने दिया था संरक्षण का निर्देश
-कहा था अतिक्रमण हटाने को, पौधे लगाने को
वाराणसी. पौराणिक असि नदी की रक्षा के लिए वाराणसी के नागरिकों ने मुहिम छेड़ दी है। कुछ संस्थाएं भी आगे आई हैं इस नदी को बचाने के लिए। वाराणसी के राजस्व विभाग के असि नदी को नाला करार देने के बाद से लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। वो इस मुद्दे पर आंदोलन तक छेड़ने की रणनीति बना रहे हैँ।
इस संबंध में सबसे पहले आगे आए हैं जागृति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष रामयश मिश्र। उन्होंने सभी वाराणसी वासियों को जागृत करने के लिए असि नदी को दिखाते हुए उसका विवरण देते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है। इसमें वह असि नदी को पौराणिक होने का प्रमाण भी दे रहे हैँ। मिश्र के अनुसार इस नदी का उल्लेख वेद और पुराणों में मिलता है। खास तौर पर शिव पुराण में इसका उल्लेख है। यही नहीं गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका में असि नदी का उल्लेख किया है।
मिश्र ने नगर निगम, विकास प्राधिकरण और राजस्व विभाग को पौराणिक असि नदी को नाले में तब्दील करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि नदियों, कुंडों, सरोवरों के संरक्षण का जिम्मा जिनके ऊपर है वही इसका वजूद नष्ट करने पर तुल गए हैं। मिश्र ने कहा कि वह तो असि नदी की रक्षा की गुहार सूबे के नगर विकास कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना से भी कर चुके है। उन्हें पत्रक भी सौंपने की बात बता रहे हैं।
रामयश मिश्र ने बताया की नदी वैज्ञानिकों ने असि नदी के बारे में मे रिसर्च करते हुए बताया है की गंगा नदि की तरह ही असि नदी में एक नदी के सभी गुण मौजूद है। इस नदी की पांच से दस फुट पर खोदाई कराने पर भूमिगत जल का स्तर तो मिलेगा ही साथ उसमें नदी के वह सभी गुण मिलेगें जो एक नदी को पूर्ण नदी बनाने का काम करती है। लेकिन दुख की बात यह है की एक जीती जागती नदी को खत्म किया जा रहा है।
असि नदी के ग्रीन बेल्ट पर हो रहा है अवैध निर्माण
एनजीटी ने असि नदी को का पुर्नजीवित करने के लिये नदी के दोनों किनारे पर हरित पट्टी (ग्रीन वेल्ट) बनाने के लिये नगर निगम को निर्देश दिया था। एनजीटी के आदेश के ठीक उल्टे रोहित नगर कालोनी में असि नदी के खाली पड़े क्षेत्र में जहां नगर निगम तो हरित पट्टी नहीं बना पाया लेकिन इसपर •भूमाफिया ने कब्जा करके उसपर अवैध निर्माण शुरू कर दिया है। पहले भूमाफिया ने यहां पर लगे पीपल, गूलर, नीम के पौधों को काट दिया और फिर उसे घेरकर उसपर बोरिंग करने का काम शुरू कर दिया है।
वीडीए के नक्शे में है ग्रीन वेल्ट
असि नदी के इस हरित वेल्ट पर जहां नक्शा वीडीए द्वारा पास नहीं होता है। असि नदि का यह खाली जमीन वीडीए के नक्शा में ग्रीन वेल्ट घोषित है। तहसील के खतौनी में यह जमीन बंजर है। इसके बावजूद अधिकारियों की मिली भगत से इस खाली जमीन को घेरकर दबंगो द्वारा बोरिंग कराई जा रही है। इसको लेकर क्षेत्रीय नागरिकों ने जिलाधिकारी से लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों तक शिकायत कर चुके है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बता दें कि इन सभी कोशिशों के बाद ही गत फरवरी में एनजीटी की टीम ने बनारस का दौरा किया तो असि और वरुणा नदी का मुआयना भी किया था। उसी वक्त एनजीटी ने जिला प्रशासन को दोनों नदियों के संरक्षण, आसपास के अतिक्रमण को हटाने और पौधरोपण का निर्देश भी दिया था। उस वक्त लोकसभा चुनाव के चलते कुछ नहीं हुआ। अब वाराणसी के राजस्व विभाग ने एनजीटी को रिपोर्ट भेज कर 1883 के बंदोबस्ती नक्शे का हवाला देते हुए असि नदी को नाला करार दिया है। बताया है कि उस नक्शे के आधार पर यह नदी नही नाला है और इसके किनारे किसी तरह का अतिक्रमण नहीं है। राजस्व विभाग ने अपने सर्वे में 10 किमी लम्बी नदी को नाला बताया। रिपोर्ट के मुताबिक 1883 में राजस्व विभाग की ओर से तैयार बंदोबस्ती नक्शे में नदी नाले के रूप में दर्शायी गई है। इसमें कई जगहों पर निजी जमीन पर नाला बह रह रहा है। सदर एसडीएम संजीव कुमार ने बताया कि सर्वे की रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी गई है।
-एनजीटी ने दिया था संरक्षण का निर्देश
-कहा था अतिक्रमण हटाने को, पौधे लगाने को
वाराणसी. पौराणिक असि नदी की रक्षा के लिए वाराणसी के नागरिकों ने मुहिम छेड़ दी है। कुछ संस्थाएं भी आगे आई हैं इस नदी को बचाने के लिए। वाराणसी के राजस्व विभाग के असि नदी को नाला करार देने के बाद से लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। वो इस मुद्दे पर आंदोलन तक छेड़ने की रणनीति बना रहे हैँ।
इस संबंध में सबसे पहले आगे आए हैं जागृति फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष रामयश मिश्र। उन्होंने सभी वाराणसी वासियों को जागृत करने के लिए असि नदी को दिखाते हुए उसका विवरण देते हुए एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है। इसमें वह असि नदी को पौराणिक होने का प्रमाण भी दे रहे हैँ। मिश्र के अनुसार इस नदी का उल्लेख वेद और पुराणों में मिलता है। खास तौर पर शिव पुराण में इसका उल्लेख है। यही नहीं गोस्वामी तुलसीदास ने विनय पत्रिका में असि नदी का उल्लेख किया है।
मिश्र ने नगर निगम, विकास प्राधिकरण और राजस्व विभाग को पौराणिक असि नदी को नाले में तब्दील करने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि नदियों, कुंडों, सरोवरों के संरक्षण का जिम्मा जिनके ऊपर है वही इसका वजूद नष्ट करने पर तुल गए हैं। मिश्र ने कहा कि वह तो असि नदी की रक्षा की गुहार सूबे के नगर विकास कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना से भी कर चुके है। उन्हें पत्रक भी सौंपने की बात बता रहे हैं।
रामयश मिश्र ने बताया की नदी वैज्ञानिकों ने असि नदी के बारे में मे रिसर्च करते हुए बताया है की गंगा नदि की तरह ही असि नदी में एक नदी के सभी गुण मौजूद है। इस नदी की पांच से दस फुट पर खोदाई कराने पर भूमिगत जल का स्तर तो मिलेगा ही साथ उसमें नदी के वह सभी गुण मिलेगें जो एक नदी को पूर्ण नदी बनाने का काम करती है। लेकिन दुख की बात यह है की एक जीती जागती नदी को खत्म किया जा रहा है।
असि नदी के ग्रीन बेल्ट पर हो रहा है अवैध निर्माण
एनजीटी ने असि नदी को का पुर्नजीवित करने के लिये नदी के दोनों किनारे पर हरित पट्टी (ग्रीन वेल्ट) बनाने के लिये नगर निगम को निर्देश दिया था। एनजीटी के आदेश के ठीक उल्टे रोहित नगर कालोनी में असि नदी के खाली पड़े क्षेत्र में जहां नगर निगम तो हरित पट्टी नहीं बना पाया लेकिन इसपर •भूमाफिया ने कब्जा करके उसपर अवैध निर्माण शुरू कर दिया है। पहले भूमाफिया ने यहां पर लगे पीपल, गूलर, नीम के पौधों को काट दिया और फिर उसे घेरकर उसपर बोरिंग करने का काम शुरू कर दिया है।
वीडीए के नक्शे में है ग्रीन वेल्ट
असि नदी के इस हरित वेल्ट पर जहां नक्शा वीडीए द्वारा पास नहीं होता है। असि नदि का यह खाली जमीन वीडीए के नक्शा में ग्रीन वेल्ट घोषित है। तहसील के खतौनी में यह जमीन बंजर है। इसके बावजूद अधिकारियों की मिली भगत से इस खाली जमीन को घेरकर दबंगो द्वारा बोरिंग कराई जा रही है। इसको लेकर क्षेत्रीय नागरिकों ने जिलाधिकारी से लेकर संबंधित विभाग के अधिकारियों तक शिकायत कर चुके है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
बता दें कि इन सभी कोशिशों के बाद ही गत फरवरी में एनजीटी की टीम ने बनारस का दौरा किया तो असि और वरुणा नदी का मुआयना भी किया था। उसी वक्त एनजीटी ने जिला प्रशासन को दोनों नदियों के संरक्षण, आसपास के अतिक्रमण को हटाने और पौधरोपण का निर्देश भी दिया था। उस वक्त लोकसभा चुनाव के चलते कुछ नहीं हुआ। अब वाराणसी के राजस्व विभाग ने एनजीटी को रिपोर्ट भेज कर 1883 के बंदोबस्ती नक्शे का हवाला देते हुए असि नदी को नाला करार दिया है। बताया है कि उस नक्शे के आधार पर यह नदी नही नाला है और इसके किनारे किसी तरह का अतिक्रमण नहीं है। राजस्व विभाग ने अपने सर्वे में 10 किमी लम्बी नदी को नाला बताया। रिपोर्ट के मुताबिक 1883 में राजस्व विभाग की ओर से तैयार बंदोबस्ती नक्शे में नदी नाले के रूप में दर्शायी गई है। इसमें कई जगहों पर निजी जमीन पर नाला बह रह रहा है। सदर एसडीएम संजीव कुमार ने बताया कि सर्वे की रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी गई है।
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