शिक्षा के अधिकार के अनुपालन के लिए बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय पर धरना

बच्चो ड्रेस, जूता, पुस्तक आदि के लिए आयी करोड़ो की प्रतिपूर्ति राशि बिना बंटे वापस
निजी स्कूल कानून से बचने के लिए अल्पसंख्यक संस्थान में पंजीकरण करा रहे हैं

वाराणसी जिले में शिक्षा के अधिकार की धारा 12-1-सी के तहत 25 प्रतिशत वंचित वर्ग के बच्चों के निजी स्कूल में निःशुल्क शिक्षा के लिए प्रवेश प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है. जारी की गयी चयन सूचियों में स्कूलों के आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता नही रही है, तमाम आवेदन अकारण निरस्त किये गये हैं, वहीँ ग्रामीण क्षेत्र में बच्चो को स्कूल आबंटन में मनमानी की गयी है. सूची में शामिल होने के बावजूद कई निजी स्कूल चयनित बच्चों को प्रवेश देने से मना कर दे रहे हैं अथवा अलग से पैसे वसूल रहे हैं. ऐसे में अभिभावकों और बच्चो को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. विगत वर्षों में इस प्राविधान के तहत चयनित छात्रों को रूपये 5000/- की प्रतिपूर्ति का भुगतान नही हुआ है और प्रवेश लेने वाले स्कूलों को भी नियमानुसार प्रतिपूर्ति प्राप्त नही हो पा रही है. विगत वर्षों में शासन से प्रतिपूर्ति के भुगतान के लिए भेजी गयी करोड़ो रूपये की धनराशि कर्मचारियों और अधिकारियों की उदासीनता के कारण बिना वितरण के वापस भेज दी गयी. कुल मिला कर वाराणसी जिले में जो माननीय प्रधान मंत्री का संसदीय क्षेत्र और उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकता का जिला होने के बावजूद शिक्षा के अधिकार का यहाँ खुले आम उल्लंघन और अनदेखी की जा रही है. सत्ता दल से जुड़े सात विधायक और तीन मंत्री और तीन विधान परिषद सदस्य होने के बावजूद शिक्षा विभाग के अधिकारी मनमानी कर रहे है और लूट में निजी स्कूलों के सहायक और सहयोगी बने हुए हैं .

         उक्त बातें शिक्षा के अधिकार अभियान उत्तर प्रदेश, देव एक्सेल फाउन्देशन एवं आशा ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान  में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय पर बुधवार को आयोजित धरने के दौरान विभिन्न वक्ताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कही. वक्ताओं ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून बने हुए 10 वर्ष से अधिक का समय हो गया फिर भी अधिकारियों की इच्छा शक्ति की कमी के कारण अभी इसके सही ढंग से अनुपालन की दिशा में सकारात्मक कार्य नही हो पाया है, जिस कारण निजी विद्यालयों द्वारा खुली लूट और शोषण जारी है. कानून की पकड़ से बाहर आने के लिए कतिपय नामचीन स्कूलों ने अपने स्कूल को अल्प संख्यक श्रेणी का स्कूल घोषित करा लिया है, इसके पीछे के बड़े खेल की जांच होना जरूरी है. 

          धरने के बाद 7 सूत्रीय ज्ञापन बेसिक शिक्षा अधिकारी के नाम से जिला शिक्षा समन्वयक जे पी सिंह को सौंपा गया. जिसमे मांग की गयी कि शिक्षा के अधिकार की धारा 12-1-सी के तहत 25 प्रतिशत बच्चों के निजी स्कूल में निःशुल्क शिक्षा के लिए प्रवेश प्रक्रिया सहज और पारदर्शी बनाई जाय. प्रवेश के लिए चयनित बच्चो की सूची सम्बंधित विद्यालयों को इस निर्देश के साथ तत्काल भेजी जांय कि वे बिना अभिभावकों को परेशान किये और कोई धन उगाही किये बच्चों को प्रवेश दें. प्रवेश देने से मना करने और अभिभावकों को परेशान करने वाले विद्यालयों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाय. धारा 12-1-सी के तहत पहले से पढ़ रहे छात्रों का विगत वर्षों की प्रतिपूर्ति के बकाये का भुगतान किया जाय. प्रवेश लेने वाले निजी विद्यालयों को भी नियमानुसार बच्चों के शुल्क की प्रतिपूति का भुगतान समय से किया जाय. निजी स्कूलों द्वारा की जाने वाली मनमानी और धन उगाही पर नियंत्रण लगाया जाय साथ ही सभी गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों के विरूद्ध शिक्षा के अधिकार कानून के तहत कठोर कार्यवाही की जाय. अपने को अल्प संख्यक स्कूल की श्रेणी में लाकर शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे से बाहर होने की मंशा रखने वाले प्राइवेट स्कूलों की विशेष जांच की जाय कि किन परिस्थितियों में उन्हें अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा प्राप्त हुआ है.

जिला शिक्षा समन्वयक जे पी सिंह बच्चों के  प्रवेश में हीला हवाली करने वाले  के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही का आश्वासन दिया.

 धरना प्रदर्शन में शिक्षा का अधिकार अभियान के संयोजक अजय पटेल, आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय, देव एक्सेल फाउन्डेशन के सचिव विनय सिंह, अधिवक्ता गौतम सिंह, प्रगतिपथ फाउन्डेशन के संयोजक दीपक मौर्या, मनरेगा मजदूर यूनियन के संयोजक सुरेश राठोर, लोक समिति के संयोजक नंदलाल मास्टर सहित प्रदीप सिंह, डा आरिफ, चिंतामणि सेठ, प्रेम सोनकर, ओम प्रकाश मिश्र, सानिया अनवर, राम जनम, जैश लाल, संजय श्रीवास्तव, रितेश सिंह, उमेश वर्मा आदि शामिल रहे।

रिपोर्ट राजकुमार गुप्ता वाराणसी

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