यूपी के विभिन्न जिलों में जमकर पंचायती राज का मखौल उड़ रहा है और शासनिक अधिकारी भी मजबूरन ‘धृतराष्ट्र की भूमिका’ में हैं.
कहीं प्रधान बनी भौजी के देवर प्रतिनिधि बने घूम रहे हैं, तो कहीं ‘प्रधान पति’ भी खुद को ग्राम प्रधान कहकर गौरवान्वित ही नहीं कर रहे हैं बल्कि सुगंधित फूल की मालाएं पहन रहे हैं. ऐसे में प्रधान पूत कहां पिछड़ने वाले थे, वे भी ब्लाक में परधानी का ठेला सजा लिए हैं. पंचायती राज का सबसे बड़ा मखौल यह उड़ रहा है कि कुछ पथभ्रष्ट सेकेट्ररी भी इन्हीं मुखबोले प्रतिनिधियों के दरबारी बन बैठे हैं।
जगजाहिर है कि पंचायती राज व्यवस्था में चुने गए जन प्रतिनिधि को अपना प्रतिनिधि नामित करने की व्यवस्था नहीं है. फिर भी कुछ ग्राम प्रधान अपने परिवार के सदस्यों को कार्यभार सौप देते हैं. जहां उक्त मुखबोले प्रतिनिधि अधिकारियों के सामने प्रधान बनकर पहुंचने लगते हैं. प्रस्ताव की आड़ में लूट-खसोट की शिकायतें भी बढ़ती है लेकिन प्रधानजी अंजान बने रहते हैं. ज्यादातर महिला जन प्रतिनिधि यह रवैया अपनाती हैं. हालांकि शासन द्वारा इस पर रोक लगा चुका है. इसके बाद भी यह चलन बरकरार है. सरकारी बैठकों में अक्सर प्रधान या बीडीसी की जगह इनके प्रतिनिधि प्रतिभाग करते हैं. हद तो तब समझिए जब कुछ गांव के सेकेट्ररी इन्हीं मुखबोले प्रतिनिधियों के इशारे पर चलने लगते हैं और दरबारी बन जाते हैं. ग्रामीणों की समस्याओं पर ध्यान देना तो छोड़िए बल्कि कुछ प्रस्तावों में यही सेकेट्ररी अपनी जेब गर्म करते हुए मनमाफिक ठेकेदारों को काम देते हैं. विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की भनक किसी को ना लगे, इसीलिए किसी कार्ययोजना का फलक बिना लगवाए ही कार्य करवाते रहते हैं. खैर..कहावत है कि ”कभी ना कभी ऊंट भी पहाड़ के नीचे आता है”… ऐसी स्थिति पंचायती राज का मखौल उड़ा या उड़वा रहे संबंधित लोगों के समक्ष भी आएगी, जो भविष्य में इन्हीं लोगों के गले की फांस बनना तय है।
Comments
Post a Comment