एक सिगरेट छः मिनट कम कर देता है आपकी जिंदगी,इसमें होते हैं चार हजार हानिकारक तत्व...

गोरखपुर: विशेषज्ञों के अनुसार एक मध्यम आकार का सिगरेट पीने से लगभग छह मिनट ज‍िंदगी कम हो जाती है। सिगरेट में निकोटिन, टार, आर्सेनिक और कैडमियम सहित चार हजार हानिकारक तत्व होते हैं।
इसके अलावा वायु प्रदूषण, चूल्हे और चिमनी का धुआं भी हमारे फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है। सीओपीडी (क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) से बचने के लिए घर का लकड़ी वाला चूल्हा बंद कर लोगों को गैस चूल्हे पर आना होगा। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है।

मेडिकल कालेज में गंभीर स्थिति में रोज पहुंच रहे 10-11 मरीज

बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग में प्रतिदिन 10-11 सीओपीडी के मरीज पहुंच रहे हैं। डाक्टरों के अनुसार सभी मरीज स्टेज-4 के होते हैं। तीन-चार को तत्काल भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया जाता है। लेकिन ज्यादा गंभीर होने की वजह से उन्हें बचाना संभव नहीं हो पाता। अधिकतम छह माह में उनकी मौत हो जाती है। यदि स्टेज एक या दो के दौरान मरीज विभाग में आ जाएं, तो उन्हें बचाना आसान होगा। इसके लिए कोई दिक्कत होने पर मरीजों को चाहिए कि डाक्टर से तत्काल संपर्क करें। जिले में ऐसे मरीजों की संख्या 40 से 45 हजार के बीच है। इस बीमारी के मरीजों को धुआं, धूल-गर्दा के साथ ही ठंड से भी बचना चाहिए, क्योंकि सांस की दिक्कत होने की आशंका रहती है। कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों को भी सावधान रहने की जरूरत है, खासकर उन्हें, जिनके फेफड़े संक्रमण काल में ज्यादा प्रभावित हुए थे।

वायु प्रदूषण भी है कारण

बीआरडी मेडिकल कालेज के टीबी एवं चेस्ट रोग विभाग के अध्यक्ष डा. अश्विनी मिश्रा ने बताया कि सीओपीडी का 90 फीसद कारण धुआं है। वह सिगरेट का हो या चिमनी अथवा चूल्हे का। 10 फीसद मामले धूल, गर्दे व वायु प्रदूषण की वजह से भी होते हैं। सीमेंट की फैक्ट्री, फ्लोर मिल में काम करने या धूल भरे स्थानों पर रहने वालों में भी यह बीमारी देखी जाती है। मेडिकल कालेज में अति गंभीर अवस्था में लोग पहुंच रहे हैं। यदि शुरुआत में आ जाएं तो उनकी जान बचाई जा सकती है।

कोविड प्रोटोकाल से नियंत्रित हुई स्थिति

चेस्ट रोग विशेषज्ञ डा. नदीम अर्शद ने बताया कि कोविड प्रोटोकाल के दौरान इस बीमारी के मरीजों को काफी लाभ पहुंचा। वे गंभीर स्थिति में नहीं पहुंचे। अनेक ने दवाएं व इनहेलर छोड़ दिया था, बावजूद इसके उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। दरअसल लाकडाउन में वाहनों के पहिए लगभग थम गए थे। इसलिए वातावरण बहुत स्व'छ रहा। लोग भी घरों से नहीं निकले। ऐसे में उनके फेफड़े मजबूत हुए। यदि कोविड प्रोटोकाल का हमेशा पालन किया जाए तो सीओपीडी के मरीज हमेशा स्वस्थ रहेंगे।

लोगों को बतानी होगी सीओपीडी की भयावहता

चेस्ट रोग विशेषज्ञ डा. वीएन अग्रवाल ने बताया कि भारत में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण सीओपीडी की बीमारी है। लोग इसके प्रति सचेत नहीं हैं। लोगों को इसकी भयावहता बताने की जरूरत है। सिगरेट के डिब्बों पर इससे होने वालें दुष्प्रभावों को अंकित किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखा गया है। यदि सिगरेट या तंबाकू उत्पादों पर इसकी भयावहता प्रदर्शित की जाए तो लोग सावधान होंगे।

कारण व लक्षण

धूमपान, धूल-गर्दे से भरे माहौल में रहना।

सांस लेने में परेशानी, खांसी-बलगम।

फेफड़ों के फूलने-पिचकने की क्षमता में कमी।

सांस की नली में सूजन व सिकुडऩ।

घरघराहट, सांस लेने पर सीटी की आवाज आना।

सीने में जकडऩ।

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