बिना तेल वाली सब्जी खाकर सो गई बुधनी, हिंदुओं ने फूँक डाले लाखों दीये. दिवाली के धुएँ में घुट रहे मछली-मगरमच्छ-मुस्लिम: वामपंथी मीडिया की रिपोर्ट

एक मशहूर 'पत्रकार' ने दीवाली के अगले दिन ट्वीट किया, "मोदी का नया भारत दीवाली पर खर्च कर रहा है, जबकि यहाँ की जनसंख्या को भरपेट खाना भी नसीब नहीं है।"
अयोध्या को दीवाली के लिए खूब सजाया गया है, क्योंकि भगवान राम के 14 साल के वनवास से लौटने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है।
लाखों हिंदू इस त्यौहार का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस बार का दीवाली उत्सव वैसे भी खास है, क्योंकि पहली बार ये त्योहार उस अयोध्या में मनाया जा रहा है जहाँ हाल ही में राम मंदिर बनकर तैयार हुआ है।

इस दिवारी पर उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार का प्लान है कि इस साल अयोध्या को लाखों दीयों से रोशन किया जाए और 25 से 28 लाख दीये जलाकर दुनिया में एक नया रिकॉर्ड बनाया जाए। उनका कहना है कि दीवाली के इस 'दीपोत्सव' में पर्यावरण का भी ध्यान रखा जाएगा, इसलिए ईको-फ्रेंडली दीये जलाए जाएँगे जो राम मंदिर और पूरे शहर को जगमग कर देंगे।

लेकिन जहाँ एक तरफ़ लोग खुशी मना रहे हैं, वहीं कुछ लोग हैं जो इस दीवाली से 'ख़तरा' महसूस कर रहे हैं। वो कोई रावण नहीं बल्कि कुछ 'परेशान पर्यावरण प्रेमी' और 'सेकुलर विचारधारा वाले' हैं, जो कीबोर्ड और ट्विटर लेकर 'हिंदू त्योहारों' के खिलाफ मुहिम छेड़ने के लिए तैयार बैठे हैं। उनके मुताबिक, दीवाली का ये जश्न पर्यावरण को नुकसान पहुँचा सकता है, और जानवरों के लिए खतरा हो सकता है।

खास बात ये है कि ये ‘एक्टिविस्ट’ का ‘2BhK’ वाला ग्रुप अक्सर अपने फ्लैट पर महँगी पार्टियों और जश्न का आयोजन करते रहते हैं, हिंदुओं के खिलाफ फर्जी खबरें फैलाने का काम करते हैं। हालाँकि अब उन्हें दिवाली के बहाने ‘हिंदुओं’ पर जहर उगलने का मौका हाथ लगने वाला था, ऐसे में इन लोगों ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप में चर्चा करते हुए दिल्ली के खान मार्केट के किसी शानदार सी-फूड रेस्टोरेंट में मुलाकात का प्लान बनाया, ताकि वे पर्यावरण और जानवरों की सुरक्षा का हवाला देकर योगी सरकार को निशाने पर ले सकें।

एक मशहूर ‘पत्रकार’ ने दीवाली के अगले दिन ट्वीट किया, “मोदी का नया भारत दीवाली पर पैसे उड़ा रहा है, जबकि यहाँ की आबादी को भरपेट खाना भी नसीब नहीं है।” उन्होंने इसे हाल ही में जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स से जोड़ा, जिसमें भारत की रैंकिंग 127 देशों में 105वें स्थान पर थी। इस रिपोर्ट को इस बात का सबूत बताया गया कि भारत में गरीबों की हालत खराब है, जबकि भारत ने इनमें से कई देशों को मुफ्त में राशन दिया, ताकि उनका पेट भर सके। और अब उस लिस्ट की आड़ में ये भारतीयों को ही भुखमरी का शिकार बता रहे हैं।

इस मशहूर पत्रकार की पत्नी, जो खुद एक यूट्यूबर है, उन्होंने प्रचार की इस मुहिम में योगदान देते हुए कहा कि अयोध्या में इस तरह दीवाली मनाना उस देश के लिए बुरा है, जहाँ बुधनी जैसे गरीब बच्चे दीयों का तेल इकठ्ठा करते हैं ताकि उनके परिवार के खाने के लिए तेल का इंतजाम हो सके।

इस ग्रुप का एक अन्य सदस्य, जो अमेरिका में स्कॉलरशिप कार्यक्रम में शामिल हुआ था, ने मुसलमानों के साथ भेदभाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि अयोध्या में दीवाली का ये भव्य जश्न भारतीय मुसलमानों के हाशिए पर होने का प्रमाण है। उसने एक मुस्लिम परिवार की तस्वीर दिखाते हुए कहा कि वे लोग बिजली का बिल नहीं चुका सकते और अयोध्या का राम मंदिर रोशनी से जगमगा रहा है।

इस ग्रुप में एक और हैं जो पेशे से चुनावी विश्लेषक हैं लेकिन दावा करते हैं कि उन्हें हर चीज़ का ज्ञान है। उन्होंने ट्वीट किया, "अरे भई, सोचा दीवाली पर असली दीये जलाना ठीक है? क्या इन्हें कार्बन फुटप्रिंट के बारे में पता नहीं?" उनके इस ट्वीट में अयोध्या को इस तरह से दिखाया गया था जैसे वह धुएं से घिरा हुआ हो। इस पर एक यूजर ने तंज कसते हुए कहा, "आज तो दुग्गल साहब पर्यावरणविद हैं!"

इसी बीच कई अखबारों में अयोध्या की दीवाली को लेकर लेख छपने लगे, जिसमें पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की बात कही गई। एक लेख की हेडलाइन थी "योगी आदित्यनाथ सरकार ने अयोध्या को पर्यावरणीय संकट में धकेला।" लेख में कहा गया कि इतनी रोशनी से रात में जागने वाले जानवरों के अधिकारों का हनन हो रहा है। "बेचारे उल्लुओं का क्या हाल होगा," लेखक ने लिखा।

उधर, जर्मनी में बैठा एक ‘मशहूर’ यूट्यूबर वीडियो में चर्चा कर रहा था कि "दीवाली तो रोशनी का ही त्यौहार है, लेकिन इसमें 'सबको शामिल करना' भी जरूरी है। क्या अंधेरे में रहने वाले लोगों से उनकी सहमति ली गई थी?" उसने अपने फॉलोअर्स से ये तक कहा कि वे इस 'अन्याय' के खिलाफ याचिका डालें ताकि इस पर रोक लग सके। उसने ये भी चिंता जताई कि सरयू नदी में रहने वाली मछलियाँ और मगरमच्छ इतनी रोशनी से ‘ट्रॉमेटाइज्ड’ यानी घबरा गए होंगे।

एक रेडियो जॉकी ने सवाल उठाया, "अरे भाई, हम अयोध्या में दीये जला रहे हैं, लेकिन अंधेरा पसंद करने वालों का क्या? क्या उन्हें भी अंधेरे में रहने का हक नहीं?" उन्होंने इसे भारतीय संविधान का उल्लंघन भी बताया।

जब सरकार ने पर्यावरण-अनुकूल दीयों का उपयोग करने की बात कही, तो एक ‘पर्यावरण कार्यकर्ता’ ने ट्वीट कर कहा, "लेकिन असली दीयों का क्या?" उन्होंने शिकायत की कि सरकार ने सभी को निराश किया है – चाहे वो हिंदू हों, पर्यावरणविद हों, जानवर हों या अल्पसंख्यक समुदाय के लोग।

इसी बीच एक और ‘पत्रकार’ ने, जिन पर अमेरिका के एक अखबार में अपने लेखों की चोरी करने के आरोप लगे हुए हैं, एक खबर शेयर की। इस खबर में बताया गया कि दीवाली के दिन अयोध्या में एक मुस्लिम व्यक्ति को चोरी करते पकड़ा गया। इस पत्रकार ने ट्वीट किया, "अब तो भारत में गरीब मुसलमानों को चोरी भी करने नहीं दिया जा रहा। पिछले दस साल में ये देश फासीवाद का अड्डा बन गया है।"

इस व्यंग्यात्मक लेख के जरिए ये समझाने की कोशिश की गई है कि किस तरह कुछ लोग किसी भी त्योहार या सांस्कृतिक आयोजन को लेकर तमाम अनावश्यक और बेतुके मुद्दे उठा लेते हैं। चाहे दीवाली हो, देश के विकास की बात हो, या किसी एक खास धर्म से जुड़ी खुशियाँ, एक तय एजेंडे के तहत आलोचना का माहौल बना दिया जाता है, ताकि असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जा सके।

Report: Kldubey 

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